साहित्य संकलन विशेष। कुमार गौरव, भागलपुर
।। सब बनता है ।।
दुनिया में बनाने से ही सब बनता है,
इंसाँ चाह ले गर तो वो रब बनता है।
कुछ भी कायदे से भला कब बनता है,
अब तो मेज़ के नीचे ही सब बनता है।
वो सब मेरे मतलब की बातें करते हैं,
उनका मुझसे जब कोई मतलब बनता है।
हथियारों से है लैश दोनों इस क़दर,
लङ मरने को मानो ये मज़हब बनता है।
माँ ही पहली उस्ताद होती है यहाँ,
घर ही बच्चों का पहला मकतब बनता है।
रचनाकार- भानु झा
