साहित्य संकलन विशेष। कुमार गौरव, भागलपुर
।। फिर कहो क्यों रोता है ।।
फिर कहो क्यों रोता है,
आँखें क्यों भींगोता है..
मुश्किलों से लड़ना होगा
तुमको आहें भरना होगा
इस सफर के सारे गम को
हमसफर सा करना होगा
ढूढ़ना हो अगर हल
तु यूँ चलता चला चल
मंज़िलें तो मिलेगी
मिले आज या कल
बैठकर तु हारे मन से
काहे पल को खोता है
फिर कहो क्यों रोता है,
आँखें क्यों भींगोता है..
कोशिशें भी की थी तुमने
मन्नतों, इरादों से
कर लिए थे हर समझौते
जागकर यूँ रातों से
जाने कितने सहे तुम
फिर भी लड़ते रहे तुम
राह काँटों भरे पर,
यूँ ही बढ़ते रहे तुम
हौसला हो चलने का तो
काँटा क्या चुभोता है
फिर कहो क्यों रोता है,
आँखें क्यों भींगोता है..
साहिलें भी पा जाओगे
जब नदी में आ जाओगे
उम्मीदों का जुगनू बनकर
आसमां में छा जाओगे
तुमने सपने बुने थे
अकेले चलने चुने थे
जीतने की हदों तक
तुमको मंज़िल छूने थे
हारकर ही जानो खुद से
हारना क्या होता है
फिर कहो क्यों रोता है,
आँखें क्यों भींगोता है..
रचनाकार- आनन्द
