रिपोर्ट- कुमार गौरव, भागलपुर
संवाददाता विशेष, विज्ञान/धर्म संवाद |
भारत की प्राचीन संस्कृति और विज्ञान जब एक-दूसरे से मिलते हैं, तो कई अद्भुत रहस्य सामने आते हैं। ऐसा ही एक रोचक और विचारोत्तेजक विषय है — मंदराचल पर्वत। एक ओर यह पर्वत पौराणिक कथाओं और धर्मग्रंथों में अमर है, तो दूसरी ओर भूगोल और भू-गर्भशास्त्र की दृष्टि से यह एक भूगर्भीय चमत्कार प्रतीत होता है।
📜 पुराणों में मंदराचल की छवि
मत्स्य पुराण (163/87) के अनुसार मंदराचल पर्वत एक समय हिमाच्छादित (बर्फ से ढका) था। यह उल्लेख यह संकेत करता है कि यह पर्वत किसी समय पर अत्यधिक ठंडे क्षेत्र में स्थित था और इससे चलने वाली बर्फीली हवाओं का असर पास के भू-भागों पर, विशेषतः अंग-महाजनपद पर भी पड़ता था।
यदि धर्मग्रंथों की इस बात को स्वीकार कर लिया जाए, तो यह निष्कर्ष निकलता है कि अंग प्रदेश की जलवायु पर मंदराचल की भौगोलिक स्थिति का गहरा प्रभाव था।
🌍 भूगोल शास्त्रियों की दृष्टि से मंदराचल
आधुनिक भूगोल वेत्ताओं के अनुसार, लगभग 30-35 करोड़ वर्ष पूर्व एक महत्त्वपूर्ण भूगर्भीय घटना घटी, जिसने पृथ्वी की संरचना को ही बदल डाला। उस समय पृथ्वी के सभी स्थलीय खंड एकसाथ जुड़े हुए थे, जिसे वैज्ञानिक “पैंजिया” कहते हैं। यह नाम प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता अल्फ्रेड वेगनर ने दिया था।
उस युग को “कार्बोनिफेरस युग” कहा गया, जब पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेट्स (प्लेटें) टूटनी शुरू हुईं और धीरे-धीरे आज की भू-आकृति सामने आई।
❄️ हिमाच्छादित भारत और अंग महाजनपद का संबंध
कार्बोनिफेरस युग में वर्तमान भारत के कुछ दक्षिणी हिस्से अत्यधिक ठंडे, यानी हिमाच्छादित थे। इसका कारण था उनका स्थान उस समय के दक्षिणी ध्रुव के समीप, विशेषकर अफ्रीका के नेटाल प्रदेश के पास।
इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बर्फीली हवाओं का असर उत्तर की ओर बढ़ते हुए अंग जनपद की पहाड़ियों तक होता था।
🌊 टेथिस सागर और मंदराचल का सम्बन्ध
उस समय जिस क्षेत्र में आज मंदराचल पर्वत स्थित है, वहाँ टेथिस सागर नामक एक विशाल जलराशि बहा करती थी। भूगर्भीय मानचित्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि मंदराचल ने एक समय सागर के जल में “स्नान” किया था।
इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु और वनस्पति पाई जाती थीं, जिसका प्रमाण आज भी पत्थरों पर अंकित जीवाश्म और पत्तों की छाप से मिलता है।
🧭 भूगर्भीय परिवर्तन और टेथिस का अंत
जैसे-जैसे टेक्टोनिक प्लेटें खिसकीं, मंदराचल की खाड़ी वाला क्षेत्र टूटकर दूर चला गया और वहाँ मिट्टी भरने से सागर सूख गया। अब जहां कभी सागर लहराता था, वहीं आज मंदराचल पर्वत खड़ा है।
भूगर्भशास्त्र इस प्रक्रिया को भूपटल विस्थापन (plate tectonics) की प्रक्रिया से जोड़ता है।
🥛 “क्षीर सागर” का संकेत
पुराणों में “क्षीर सागर” का उल्लेख मिलता है, जहां मंदराचल को मथानी की तरह प्रयोग किया गया था। विद्वानों का मत है कि “क्षीर” शब्द समय के साथ बदलकर “चीर” हो गया, जो इस क्षेत्र के नामों और किंवदंतियों में अब भी सुनने को मिलता है।
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मंदराचल केवल एक पौराणिक पर्वत नहीं, बल्कि वह भूगोल और पुराणों के अद्भुत संगम का प्रतीक है। जहां एक ओर यह पर्वत समुद्र के गर्भ से उभरा प्रतीत होता है, वहीं दूसरी ओर इसके चारों ओर फैली वनस्पति और जीव-जंतु इस बात का संकेत देते हैं कि यह क्षेत्र कभी अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण जैव-पर्यावरण का हिस्सा रहा होगा।
यह रिपोर्ट हमें यह सिखाती है कि पुराण और विज्ञान विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हो सकते हैं। एक ओर जहां धर्मग्रंथ हमारी सांस्कृतिक जड़ों को दर्शाते हैं, वहीं भूगोल और विज्ञान हमें भौतिक सत्य के करीब ले जाते हैं। और कभी-कभी, दोनों मिलकर हमें हमारी धरती की अद्भुत कहानियाँ सुनाते हैं।
लेखक: ✍️ विशेष संवाददाता, इतिहास एवं विज्ञान डेस्क
स्रोत: मत्स्य पुराण, भूगोल शास्त्र, टेक्टोनिक प्लेट सिद्धांत, जीवाश्म विज्ञान
ग्राफिक्स सुझाव: टेथिस सागर, पैंजिया का मानचित्र, कार्बोनिफेरस युग की स्थिति, मंदराचल का आज का दृश्य
