कुमार गौरव, भागलपुर। संवाददाता विशेष, विज्ञान/धर्म संवाद |
📰 “मंदराचल: जहां आज पर्वत खड़ा है, वहां एक समय लहराता था सागर – पुराण और भूगोल की संगति से खुला रहस्य” ।
बांका/ भागलपुर- मत्स्य पुराण – 163/87 के अनुसार जानकारी मिलती है कि मंदराचल कभी हिमिच्छादित था। प्राचीन धर्मग्रंथों की बात अगर स्वीकार कर ली जाय तो क्या यह नहीं कहा जा सकता कि मंदराचल से चलने वाली बर्फीली हवाओं का असर अंग-महाजनपद पर पड़ता था।
आधुनिक भूगोल वेत्ताओं की मान्यता है कि आज से लगभग तीस -पैतीस करोड़ वर्ष पूर्व एक ऐतिहासिक घटना हुई थी, जिसने पूरी पृथ्वी की तस्वीर बदल डाली थी।उस घटना से पूर्व के काल को ” कार्बोनिफेरस युग “के नाम से संबोधित किया गया है।तब विश्व के सभी स्थलीय खंड संयुक्त थे। जिसका नाम अल्फ्रेड वेगनर ने “पैंजिया” दिया था। मान्यता के अनुसार अंतिम ” काबोंनिफेरस युग “में धरती के प्लेट का टुटना आरंभ हुआ और कई चरणों में टुटे प्लेट से पृथ्वी ने एक नया स्वरूप धारण किया।
भूगोल की पुस्तकों में दिये गए मानचित्रों के अवलोकन से यह तथ्य उद्घाटित होता है कि हिमाच्छादित क्षेत्र से अंगजनपदीय पहाड़ियां बहुत दूर नहीं थी। कार्बोनिफेरस युग में वर्तमान भारत के कुछ दक्षिणी हिस्सें हिमाच्छादित थे, क्योंकि उस समय ये क्षेत्र अफ्रीका के ” नेटाल प्रदेश” (जो दक्षिणी ध्रुव का केंद्र था) के बहुत नजदीक था। अतः इस आधार पर भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि बर्फीली हवाएं अंग-जनपदीय
पहाड़ियों पर असर डालती थी। आज जहां मंदराचल खड़ा है, कार्बोनिफेरस युग की भौगोलिक स्थिति को दर्शाने वाले मानचित्रों में वहां सागर दिखाया गया है। यहीं विलुप्त हो चुके उस सागर को ” टेथिस सागर ” कहा गया है। निष्कर्ष यह सामने उभर कर आता है कि मंदराचल ने कभी सागर के जल भाग से अवश्य स्नान किया था। दूसरी ओर इस पहाड़ी क्षेत्र में विभिन्न विचित्र तरह के जीव-जंतु रेंगा करते थे। पेड़ -पौधें तब भी यहां के श्रृंगार थे, वरना पत्थरों पर पत्तों की छापें और अन्य कई तरह की छापें दिखाई नहीं पड़ती। पृथ्वी ने जब नया स्वरूप धारण किया था।उस समय में वर्तमान भारत के एक बड़े तटीय क्षेत्र का अस्तित्व नहीं था। वर्तमान भारत में उस युग के टेथिस सागर की स्थिति को दर्शाने के लिए मानचित्र आवश्यक है। उपरोक्त भौगोलिक तथ्यों के आधार पर भी धरती के प्लेट टुटने की घटनाएं सत्य मालूम पड़ती है।
लेकिन आधुनिक भूगोल शास्त्रियों और भू-गर्भ वेत्ताओं कि जो मान्यता है उससे बहुत पहले ही घटित हो चुकी वह घटना थी। उस घटना से मंदराचल की खाड़ी का प्लेट टुट कर दूर खिसक गया।उस खाड़ी में मिट्टी भरकर सागर अपने स्थान से हट कर दूर हो गया।आज जहां मंदराचल पर्वत खड़ा है, वहां पहले समुन्द्र लहराया करता था। यह भी ज्ञात हो कि “क्षीर” का ही अपभ्रंशित नाम “चीर” हो गया है।
लेखक: ✍️ डॉ0 प्रदीप प्रभात
