सौजन्य- कुमार गौरव, भागलपुर
“‘लड़ाई लंबी है’: जब कविता बन गई क्रांति का शंखनाद”
लड़ाई लंबी है”
अगर विरासत दावानल है,
तो समुद्र ही बनना होगा।
हिम शिखरों को मित्र बनाकर,
शीत बूंद चुनना होगा।।
अगर पलायन कर जाओगे,
दावानल फिर बना रहेगा।
यदि बदलाव नहीं कर पाए,
तो फिर कोई और जलेगा।।
अपने हिस्से का युद्ध करो,
जितना कर सकते शुद्ध करो।
है कृष्ण नहीं सारथी अगर,
तो अंत:मन को बुद्ध करो।।
यह हार जीत की बात नहीं,
बदलाव प्रकृति में करना है।
दावानल बन जाए शीत पवन,
आसान नहीं पर करना है।।
संघर्ष सत्य निष्ठा से की,
तो स्वयं लीक बन जाएगी।
तेरे पल पल का वो किस्सा,
बच्चों की सीख बन जाएगी।।
फिर नई विरासत लिखेंगे,
नव जीवन का आगाज करेंगे।
“संजय” बदलाव शुरू होगा,
शीतल वो सकल समाज करेंगे।।
रचनाकार – दिलीप पांडे
