वरिष्ठ पत्रकार । राजेन्द्र सिंह । भागलपुर
भागलपुर । कोयल की कूक दे रही आम पकने का संकेत ।।
बचपन में बुजुर्गों की जुबानी सुना था कि कोयल अपनी कूक से न केवल मंजरियां और टिकोले उगाती है , बल्कि अपनी टेर से उसमें मिठास भी भरती है । लेकिन जब आम पकने के करीब पहुंचता है , भीषण गर्मी से आहत हो वह बेहोश हो जाती है । यह बेहोशी बारिश का मौसम आने पर ही टूटती है । लेकिन बेहोशी टूटते ही उसका पी ” , यानी आम खत्म हो चुका होता है । यही कारण है कि ग्रीष्म में कुहू – कुहू की उसकी कूक बारिश के मौसम में ” पी कहां … पी कहां ” में बदल जाती है , जिसमें एक आकुलता , एक वियोग , एक दर्द और एक तड़प पोशीदा होती है । बुजुर्गों द्वारा सुनी – सुनायी इस कहानी का सच वर्षों से तलाशता रहा और अब मुझे पक्का यकीन हो गया कि पेड़ों में आम के उगने – पकने का कोयल की कूक से गहरा संबंध है ।अमराइयों में वह न कूके तो न तो आम उगेगा , न ही उसमें मिठास आ पायेगी । कहना गलत नहीं होगा कि कोयल और उसकी सुरीली तान की ही देन है अमृत फल आम , जिसे खाने का इंतजार हम पूरे साल तक करते हैं । बहरहाल , दिन – रात अहर्निश गूंजने वाली कोयल की कूक यह स्पष्ट संकेत दे रही है कि उसके द्वारा उगाये गये फलों के राजा आम के पकने का सही वक्त आ गया है । अभी जो आम बाजार में उपलब्ध है , वह प्राकृतिक रूप से पूर्ण नहीं है , जबरिया पका कर बेचा जा रहा है , जिसमें न प्राकृतिक स्वाद है , न मिठास । इसके बरअक्स अब जो आम उपलब्ध होगा , वह सरस , सुस्वादु और कुदरती मिठास से परिपूर्ण होगा ।तब कोयल की कूक कहीं सुनाई नहीं देगी । अमराइयों के इर्द – गिर्द रहने वाले मित्र चाहें , तो इस सच को परख सकते हैं ।मैं तो परख चुका हूं । जिन्हें ऐसा कर पाने का इत्तेफाक न हो , वे यकीन कर आम का रसपान आंख मूंद कर करना शुरू कर दें और इंतजार करें फिर से विरहाग्नि में जलती कोयल की कूक का ।
