साहित्य संकलन विशेष। कुमार गौरव, भागलपुर
।। “स्त्री: जीवन का स्तंभ” ।।
दुनिया भर से थक हारकर
पुरुष,
स्त्री के कंधे पर
रखता है अपना सिर
स्त्री सौंपती है अपना कंधा
जिसपर माथा टिकाकर
निराशाओं से घिरा हर पुरुष
एक बार फिर से
नया जीवन पाता है।
इस सृष्टि के
बचे रहने का पूरा भार
एक स्त्री के कंधे पर टिका हुआ है।
स्त्री का कंधा,
सृजन के निर्माण में
बनने वाली बड़ी इमारत का
एक मजबूत स्तंभ है।
कवि- आनन्द
